दूधाधारी मठ राजधानी के ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है यहां की खूबसूरती सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है। इतिहासकारों का कहना है कि 16वीं शताब्दी की शुरुआत में दूधाधारी मंदिर का निर्माण हुआ। यहां मुगलों तथा अंग्रेजों के काल में दूधाधारी मठ की धार्मिक आस्था न केवल छत्तीसगढ़ में फैली थी, बल्कि पूरे देश में इसकी कीर्ति स्थापित है।
ऐतिहासिक दूधाधारी मठ का निर्माण राजा रघुराव भोसले ने करवाया था। यहां पर भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान विश्राम किया था। यहां रामसेतु पाषाण भी रखा गया है।
इस मठ के संस्थापक बालभद्र दास महंतजी हनुमान जी के बड़े भक्त थे। उन्होंने एक पत्थर के टुकड़े को हनुमान जी माना और श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करने लगे। वह अपनी गाय सुरही के दूध से उस पत्थर को नहलाते थे और फिर उसी दूध का सेवन करते थे। इस तरह उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया और जीवन पर्यन्त दूध का सेवन किया। इस तरह बालभद्र महंत दूध आहारी हो गए इसका मतलब दूध का आहार लेने वाला। बाद में यह दूधाधारी मठ नाम से जाना गया।
दूधाधारी मठ ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। जहां मुगल और ब्रिटिश काल की यादें जुड़ी हुई है। आज दूधाधारी मठ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश में विख्यात है।
दूधाधारी मठ मंदिर में पिछले 150 साल से दशहरा के मौके पर चली आ रही रामलीला मंचन की परंपरा आज भी जिंदा है। एक समय था जब मठ में ही रहने वाले पुजारी व सेवादार मिलकर रामलीला का मंचन किया करते थे लेकिन अब उनमें से ज्यादातर कलाकार दुनिया में नहीं रहे इसलिए मठ में रामलीला का मंचन अब वहां के सेवादार नहीं करते बल्कि इस परंपरा को जीवित रखने के लिए प्रतिवर्ष दूसरे शहरों से रामलीला मंडली को आमंत्रित किया जाता है। पूरे नौ दिनों तक रात्रि में होने वाली रामलीला को देखने के लिए दूधाधारी मठ के आसपास के इलाकों से प्रतिदिन सैकड़ों लोग जुटते हैं और रामलीला के विभिन्न प्रसंगों का आनंद लेते हैं। अंतिम दिन दशहरे पर मंदिर परिसर से शोभायात्रा निकलती है जिसमें राम, लक्ष्मण, सीता, जामवंत व हनुमान बने पात्र रावणभाठा मैदान पहुंचते हैं और वहां राम-रावण युद्ध का मंचन करते हैं। इसके पश्चात रावण वध किया जाता है। दूधाधारी मठ के अलावा और कहीं भी प्रतिदिन रामलीला का मंचन नहीं किया जाता ।
दूधाधारी मठ मंदिर में पिछले 150 साल से दशहरा के मौके पर चली आ रही रामलीला मंचन की परंपरा आज भी जिंदा है। एक समय था जब मठ में ही रहने वाले पुजारी व सेवादार मिलकर रामलीला का मंचन किया करते थे लेकिन अब उनमें से ज्यादातर कलाकार दुनिया में नहीं रहे इसलिए मठ में रामलीला का मंचन अब वहां के सेवादार नहीं करते बल्कि इस परंपरा को जीवित रखने के लिए प्रतिवर्ष दूसरे शहरों से रामलीला मंडली को आमंत्रित किया जाता है। पूरे नौ दिनों तक रात्रि में होने वाली रामलीला को देखने के लिए दूधाधारी मठ के आसपास के इलाकों से प्रतिदिन सैकड़ों लोग जुटते हैं और रामलीला के विभिन्न प्रसंगों का आनंद लेते हैं। अंतिम दिन दशहरे पर मंदिर परिसर से शोभायात्रा निकलती है जिसमें राम, लक्ष्मण, सीता, जामवंत व हनुमान बने पात्र रावणभाठा मैदान पहुंचते हैं और वहां राम-रावण युद्ध का मंचन करते हैं। इसके पश्चात रावण वध किया जाता है। दूधाधारी मठ के अलावा और कहीं भी प्रतिदिन रामलीला का मंचन नहीं किया जाता ।
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